सन् 1961 की बसंत पंचमी। युवा गिरिराजशरण अग्रवाल और उनके कुछ मित्रों ने महाप्राण निराला की स्मृति में एक आयोजन का विचार किया। तत्काल किसी संस्था का नाम सोचा गया और नाम रखा गया हिंदी साहित्य निकेतन।
और इस तरह 50 वर्ष पहले इस संस्था की नींव पड़ी। स्थान था संभल, जिसके संबंध में कहा जाता है कि कल्कि विष्णु का अवतार इसी नगर में होगा।
यह तो प्रारंभ था। केवल साहित्यिक आयोजनों पर आधारित थी संस्था।
फिर योजना बनी और जनपद मुरादाबाद के कवियों को एक मंच पर लाने का कार्य आरंभ हुआ।
तीर और तरंग के नाम से एक संग्रह प्रकाशित हुआ जिसका विमोचन 24 अक्टूबर 1964 को हुआ।
यह पहली पुस्तक थी जो हिन्दी साहित्य निकेतन ने प्रकाशित की।
संस्था ने अभी तक लगभग तीन सौ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें हर स्तर पर गुणवत्ता का ध्यान रखा गया है।
संस्था की ओर से एक त्रैमासिक पत्रिका 'शोध-दिशा' नाम से प्रकाशित होती है, जो साहित्यिक क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी है।







शोधसंदर्भ-भाग-1
मूल्य-500.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल एवं डॉ. मीना अग्रवाल


शोधसंदर्भ-भाग-2
मूल्य-550.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल एवं डॉ. मीना अग्रवाल


शोधसंदर्भ-भाग-3
मूल्य-525.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल एवं डॉ. मीना अग्रवाल




1996 की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य रचनाएँ
मूल्य-100.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल


1997 की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य रचनाएँ
मूल्य-100.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल


1999 की श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य रचनाएँ
मूल्य-120.00
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल


शोध संस्थान के रूप में प्रसिद्ध हिंदी साहित्य निकेतन की स्थापना डा. गिरिराज शरण अग्रवाल ने 1961 में की। संस्था के प्रारंभिक वर्षों से ही डा. मीना अग्रवाल ने इसको आगे बढाने में सहयोग दिया।
1973 में यह संस्थान बिजनौर में आ गया और दोनों ने मिलकर इसे विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई।







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